माचिस की वो तीलियाँ - whatsup Poet

एक जैसी ही दिखती थी...माचिस की वो तीलियाँ,
कुछ ने दिये जलाये......और कुछ ने घर,
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कुछ ने महकाई....अगरबत्तियां मंदिरों में,
तो कुछ ने सुलगाये.....सिगरेट के कश,
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कहीं गरमाया चूल्हा...और बनी रोटियाँ,
तो कहीं फटे बम....और बिखरी बोटियाँ,
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जली कहीं शादी में.....बन हवनकुंड की अगन,
तो फूँकी गयी....दहेज़ की कमी से कोई सुहागन,
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काजल कभी....नवजात शिशु का बनाया,
तो शमशान में....किसी चिता को जलाया,
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एक सी दिखती थी.....माचिस की वो तीलियाँ पर,
सभी ने अपना....एक अलग ही रंग दिखाया..

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