दिव्य सत्संग - पूज्य बापूजी

*_🌺दिव्य सत्संग🌸_*

*_'भगवान एक ही थे, सबमें थे, सब जगह थे तो फिर यह जगत रचकर गड़बड़ क्यों ? बन्धन में पड़ना.... मुक्ति के लिए छटपटाना.... प्रयत्न करना.... फिर मुक्त होना.... इतना दुःख... इतना सुख.... यह सब क्यों किया ?_*

*_एक सेठ था। उसने कुआँ खुदवाया ताकि लोग शीतल-शीतल जल पीएँ। पानी पीने वाले पानी पीते हैं। थोड़ा बहुत ढुलता है तो कीचड़ भी होता है। कोई मूर्ख वहाँ आकर आत्महत्या कर लेता है, कुएँ में डूब मरता है। अब लोग चिल्लाते हैं कि सेठ ने कुआँ क्यों खुदवाया ? एक आदमी मर गया, कीचड़ हो जाता है, मच्छर हो जाते हैं।_*

*_वास्तव में मच्छरों के लिए या कीचड़ या डूब मरने के लिए कुँआ नहीं था। कूँआ तो था जल पीने के लिए। जल पीने-भरने वालों ने थोड़ी अव्यवस्था की तो कीचड़ हो गया। अब सुव्यवस्था करके कीचड़ को हटाओ और कुँए का सदुपयोग करो। शीतल जल मिलेगा।_*

*_कोई बेवकूफी से कुँए में डूब मरे या कीचड़ के दलदल में फँसे उसमें कूँआ खुदवाने वाले धर्मात्मा का क्या दोष ? ऐसे ही संसार रूपी कूप बनाने वाले परमात्मा का क्या दोष ? संसार में से अनुभव लो। संसार के व्यवहार में रहते हुए परमात्मा का अमृत पीते हुए तृप्त बनो। इसलिए संसार बनाया है कि अनुभवों से गुजरते हुए आत्मलाभ कर लो। संसार की चीजों में, आसक्ति में, काम में, क्रोध में, लोभ में, मोह में, मद में, अहंकार के दलदल में कोई फँस मरे इसमें संसार रूपी कूप बनाने वाले का क्या दोष ?_*


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*शुभ संकलन*

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*_🌺दिव्य सत्संग🌸_*

*_जैसे माँ के चार बेटे हैं। एक ने जुलाब लिया है उसको खिचड़ी देती है। दूसरे को हल जोतने खेत में जाना है उसको रोटी और प्याज देती है। तीसरा M.B.B.S. की परीक्षा देने जाता है उसको मालपूए और दूध देती है। चौथा खाने के लिए रो रहा है उसको न खिचड़ी देती है, न मालपूए और न रोटी और प्याज देती है।_*

*_उसकी तबीयत खराब है। उसको अभी भूखामरी कराना है। खाएगा तो और बीमार होगा। वह खाना माँगता है तो उसे थप्पड़ दिखाती है। कॉलेज में जाने वाला कहता है कि मुझे भूख नहीं लगी है, मुझे नहीं खाना है तो माँ उसे पुचकारती है कि, 'बेटा ! खा ले, भूख लगेगी, थक जाएगा।' उसको समझा बुझाकर दे रही है और दूसरा रो रहा है उसको नहीं देती। फिर भी माँ तो माँ ही है।_*

*_सहानुभूति तो सब बच्चों से है लेकिन सबकी उन्नति के लिए सबसे अलग-अलग व्यवहार होता है। ऐसे ही भगवान की सहानुभूति तो दैत्यों से भी है, देवों से भी है, पशुओं से भी है, पक्षियों से भी है। लेकिन उनकी उन्नति के लिए प्रकृति के व्यवहार में भिन्नता नियत की गई है।_*

*_🌷पूज्य बापूजी 🌹_*
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*शुभ संकलन*

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