ये जीवन इक नाटक है ,इसके सिवा कुछ भी नहीं- Whatsup Massage

ये जीवन इक नाटक है ,इसके सिवा कुछ भी नहीं
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यहां शत्रु मित्र हो जाते हैं, मित्र शत्रु हो जाते हैं। यह संसार बड़ा अजीब गोरखधंधा है। इस गोरखधंधे से--मलूकदास कहते हैं--बिल्कुल ऊब गए; यह सब झूठ है, यह सब नाटक है! यह सब पर्दे के इस तरफ जो चल रहा है, सच्चा नहीं है, पर्दे के भीतर कुछ और ही मामला है। तुम कभी-कभी रामलीला पीछे से भी जाकर देखा करो--पर्दे के पीछे, जहां अभिनेता सजते हैं।

मेरे गांव में जब भी रामलीला होती थी तो मैंने हमेशा पीछे से ही देखी है। बाहर में क्या है, एक दफा देख ली, वही का वही खेल हर साल! मगर भीतर का खेल बड़ा अद्भुत है। मैंने सीताजी को बीड़ी के कश लगाते देखा है! बस एकदम जा रही हैं बाहर, स्वयंवर रचा जा रहा है--आखिरी कश! मैंने रावण को रामचंद्र जी को डांटते देखा है कि क्यों रे  तुझे कल मेरी तरफ देखकर बोलना था और तू देख रहा था मेरी पत्नी की तरफ!. . . पत्नी वहां देखनेवालों में, दर्शकों में बैठी होगी।. . . अगर दुबारा यह हरकत की, चटनी बना दूंगा। यह असली नाटक! इसको देखना हो तो पर्दे के पीछे देखना चाहिए।

मेरे गांव में जो मैनेजर थे वे मुझसे पूछते कि यह. . .तुम्हें पीछे से क्यों देखना है? सारी बस्ती बाहर देखती है, एक अकेले तुम हो जो कहते हो कि मुझे पीछे बैठ जाने दो! यहां पीछे क्या रखा है? मैंने कहा ः तुम फिक्र न करो। इससे मुझे बड़े गहरे सूत्र मिलते हैं।

जिंदगी को ज़रा गौर से देखो। ज़रा पर्दे उठाकर देखो। ज़रा ऊपर-ऊपर के जो ढांचे हैं, इनके भीतर झांको और तुम भी कहोगे यही

– ओशो

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