कोरोना लॉकडाउन में स्त्री

* लॉकडाउन में स्त्री*

दूध लाना था
मैंने कहा ATM से
पैसे निकाल कर
लाता हूँ..
घर खर्च के लिए...
इतना सुनते ही
एक आवाज आई
रुक जाओ
फिर पलंग के नीचे से
लोहे की पेटी खींच कर
और पेटी से एक पोटली
खोलकर
500 का नोट
देते हुए बोली
ये मेरे हैं, बस इतने ही हैं
इसे ले जाओ
पर ATM मत जाओ
बहुतों ने उसकी बटन दबाई होगी....
तुम बचो....
दूसरे दिन फिर कुछ
जरूरत आन पड़ी
फिर पेटी खोली
दूसरी पोटली से...
फिर 500 देते हुए बोली
ये मेरे हैं...
बस इतने ही हैं
ATM मत जाना....
लॉक डाउन के शुरुआत से
यह क्रम रोज चल रहा
रोज नई पोटली खुल रही
ATM जाने से रोक रही है
सामान बाहर ही धरवा रही
बाहर ही नहलवा रही है...
दिन में चार बार
धनिया,मिर्च, लहसुन
मंगवाना और मेरा
बुरी तरह झल्लाना
जाने कौन से खजाने से
तमाम सामान निकाले
जा रही है...
पैसे मेरे हैं, इतने ही हैं
कहकर...
मुझे देते जा रही है।
अबोध गुड़िया ने छोड़ दी
चॉकलेट फुग्गो की जिद्द
वो भी तकिया उछाल रही हैं
मिट्टी की गेंद बनाकर
दीवाल पर उछाल रही हैं!
भारत की बेटी
भारत के संस्कार
अभी से अपना रही है।
जिद्दीपन की उम्र में
संयम दिखा रही है!
आज समझ आया मुझे
धोने की पेंट से
छूटे पैसे को निकाल
जिस तिजोरी में धरती रही
वो तिजोरी आज
काम आ रही है..
जो हर घर में लापरवाहों को
भीड़ में जाने से बचा रही है।
इस भूमिका को पूरे देश में
माँ/पत्नी/भाभी/बहन
बखूबी निभा रही हैं!
ये पंक्तियां नारी शक्ति के
नाम करता हूँ,
उनके संयम को
प्रणाम करता हूँ!

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