सूफियों की एक कहानी - Whatsup Massage

  सूफियों की एक कहानी है---------

      ईसा के संबंध में। बाइबिल में तो नहीं है; लेकिन सूफियों के पास कई कहानियां हैं ईसा के संबंध में, जो बाइबिल में नहीं हैं। और बड़ी प्यारी कहानियां हैं। कहानी है कि ईसा ध्यान करने पर्वत पर गए। पर्वत बिलकुल निर्जन था; मीलों-मीलों तक किसी का कोई पता न था। लेकिन एक बूढ़ा आदमी उन्हें उस पर्वत पर मिला। एक वृक्ष के नीचे बैठा--मस्त! पूछा उस बूढ़े आदमी से: कितने दिनों से आप यहां हैं? क्योंकि वह इतना बूढ़ा था कि लगता था होगा कम से कम दो सौ साल उम्र का। उस बूढ़े ने कहा: सौ साल के करीब मुझे यहां रहते-रहते हो गए हैं। तो ईसा ने चारों तरफ देखा, न कोई मकान है, न छप्पर है। तो पूछा कि धूप आती होगी, वर्षा आती होगी...न कोई छप्पर न कोई मकान! यहां सौ साल से रह रहे हैं? कोई मकान नहीं बनाया?

तो वह बूढ़ा ज़ोर से हंसने लगा। उसने कहा: मालिक, तुम जैसे और जो पैगंबर पहले हुए हैं, उन्होंने मेरे संबंध में यह भविष्यवाणी की थी कि केवल सात सौ साल जीऊंगा। अब सात सौ साल के लिए कौन झंझट करे मकान बनाने की--केवल सात सौ साल! दो सौ तो गुजर ही गए। और जब दो सौ गुजर गए तो बाकी पांच सौ भी गुजर जाएंगे। दो और पांच में कुछ फासला बहुत तो नहीं। सात सौ साल मात्र के लिए कौन चिंता करे छप्पर बनाने की।

यह कहानी प्रीतिकर है। हम तो सत्तर साल रहते हैं तो इतनी चिंता करते हैं, इतनी चिंता करते हैं कि भूल ही जाते हैं कि यहां सदा नहीं रहना है! भूल ही जाते हैं कि मौत है, और मौत प्रतीक्षा कर रही है। और आज नहीं कल, कल नहीं परसों द्वार पर दस्तक देगी। और सब जो बनाया है छिन जाएगा। सिर्फ निर्वाण की चुनरी मौत नहीं छीन पाती। उसी के ताने-बाने बुनो। उसका ही ताना-बाना जो बुनने लगे उसे मैं संन्यासी कहता हूं।

और मेरे लिए संन्यास चुनरी है। मेरे लिए संन्यास रूखी-सूखी बात नहीं। मेरे लिए संन्यास बड़ी रस-विमुग्ध दशा है। इसलिए तो इस जगह को मैं मंदिर नहीं कहता, मैखाना कहता हूं।

बिरहिनी मंदिर दियना बार

ओशो

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